बदल गई मेरी फितरत
बदल गई मेरी फितरत अब, मुझमें अब न बुराई है
घनीभूत होती जाती अब, जीवन में अच्छाई है
मेरी काया हुई कुंदनी, रोग न मुझे सताते अब
भाॅंति-भाॅंति के सद्विचार ही, मुझको बेहद भाते अब
पढ़ता हूॅं मैं आर्ष ग्रन्थ अब, सन्तों के प्रवचन सुनता
प्रवचन का निहितार्थ समझकर, उसको मन-ही-मन गुनता
माया मेरे निकट न आती, रावण मुझे न छू पाता
परमात्मा की अनुकम्पा से, मेरा यश बढ़ता जाता
मैं प्रभु का अतीव आभारी, उनका वंदन करता हूॅं
करके उनकी याद पदकमल, पर सविनय शिर धरता हूॅं
महेश चन्द्र त्रिपाठी
R 115 खुशवक्तराय नगर
फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
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