हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा
कहीं रावण, कहीं मारीच,सुपनखा न मिल जाए।
कहीं बहरूपिया कोई, न तुमको ठग के ले जाए।।
रखो तुम प्रश्न रूपी वाण, स्वयं चैतन्य तरकश में।
लगे जब घाव तो मारीच, समर्पण स्वयं कर जाए।।
हैं जीवन की जो मर्यादा, न लांघो-लांघने दो तुम।
तो कैसे कोई दसकंधर, सिया का हरण कर जाए।।
बिना मतलब तो मत ढूंढो, मंथरा में ही तुम गलती।
हो कैकेई जो मर्यादित, तो कभी न राम वन जाए।।