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1 May 2021 · 1 min read

बदले दिन

बंद दरवाज़ों से होता है
रोज सामना
अब
यौं बार बार
पलकें झपकना
खुद को निहारना
आइने में
कभी लगता था
कि वक्त थम जाये
उस देहरी तले
पर पीली घूप
सामने है
पहर भी
गुज़र गये
एक नयी इब्तिदा
सामने अब
आओ हमतुम
फिर से
बढ़ चले

मनोज शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 395 Views
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