बदली ज़िंदगी
बदली ज़िंदगी
इस कदर बदली है ज़िंदगी
समय गुजरने के बाद
इक वक्त जैसे बेपनाह
फुर्सत के पल के साथ।
भावों का कुदरती प्रवाह
बेरोक टोक इस तरह बहा
सरोवर हो गई मन की उड़ान
भूल गई अपनी पहचान ।
ज़िंदगी कुछ बेमानी लगी
अपनी नहीं बेमानी लगी
कुछ कर गुजरने की चाह ने
बेताबी सी हर पल छाने लगी।