बदलियां
गीतिका
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सावनी ऋतु की बदलियां खूब छाती रातदिन।
और कुदरत तृप्त होकर मुस्कुराती रातदिन।
चांदनी है रात आकर्षण लिए सबके लिए।
स्नेह की स्मृतियां हृदय में झिलमिलाती रातदिन।
जिन्दगी के पल सुखद हम भूल जब पाते नहीं।
मुश्किलों में याद है उनकी सताती रातदिन।
बह रहे निर्झर अनेकों घाटियों में देखिए।
साथ नदियां खूबसूरत गीत गाती रात दिन।
मोह माया का तमाशा चल रहा अविरल यहां।
खूब भरमाती सभी को नित नचाती रातदिन।
डगमगाते हैं कदम प्रिय स्वप्न आंखों में लिए।
जब जवानी बिन रूके है पग बढ़ाती रातदिन।
है बहुत कल्याणकारी भावना पुरुषार्थ की।
भेद मिट जाते सभी अपना बनाती रातदिन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य