बदला सा……
बदला सा …..
बदला सा है जीवन
मेरा सुनहरा स्वप्न
या कल्पना अलेश
पतझड़ सा मौसम
निर्जल,बेमजा सा
बन गया है बसन्त
बिखरा सा कोना कोना
सजा आज करीने से
सूखी हुई सी जमीन
छाई हरियाली अनन्त
निहारती एक टक
बेपरवाह बेफिकर
रूप रंग यूँ नवीन
लालिमा सी मुख पर
अनोखी कुछ सहज
चलती समेटकर
आँचल में प्रेम अपार
नयनो में आभा नई
सम्मुख नया संसार।।
✍️”कविता चौहान
स्वरचित एवं मौलिक