बदला तो लेना हैं मगर ( पाक को समझाने के लिए एक रचना)
बदला तो लेना हैं मगर, तेरा बचना हैं नामुंमकिन |
आजा पाक आजा रणखेत में, तेरा जुर्म हैं संगीन ||
आहत हैं दिल मेरा,तेरे खाम्याजो की मकारी से |
पाक दर्द आँसू का दिया अब बदला लेना तेरे से ||
रूहानी शामें थी सीमा पर रक्त सी रंगीन कर दी |
सीमा पर सतरा दिल की गाथा बनी आँखे भरदी||
कितनो के दिल छली किये हैं मदहोश धरा रंगीन |
पाक कुछ भी करले न मिलेगी कश्मीरी जमीन ||
बदला तो लेना हैं मगर तेरा बचना हैं नामुंमकिन |
आजा पाक आजा रणखेत में तेरा जुर्म हैं संगीन ||
कतरा-कतरा हैं मगर बदले की आग छलक रही |
उस पिडा का दर्द न गया सतरा पिडा भडक रही ||
आतंक से आरजू हैं सामना न करने की औकात |
बहूत जाने गयी अब सुनले बदले की हैं सौगात ||
जुर्म की हद हो गयी हैं,पाक मिटा दूँगा तेरा वतन |
कुछ भी करले प्रयास मगर, तेरे सब बेकार जतन ||
बदला तो लेना हैं मगर तेरा बचना हैं नामुंमकिन |
आजा पाक आजा रणखेत में तेरा जुर्म हैं संगीन ||
तेरी शामें बेकाबू हैं गुजरेगी हरदम मुश्किल |
तेरा पर्दा पास हो गया दुनियाँ में गया फिसल ||
दिल तो अब धधक उठा कयामत का झरना |
सुनले दर्द का दरिया तेरी मौत की हैं गर्जना ||
तुने फौलादी आग देखी न नाश हैं पाक यकीन|
ए-पाक दरिया टूट गया मगर, तुने की तौहीन ||
बदला तो लेना हैं मगर तेरा बचना हैं नामुमंकिन |
आजा पाक आजा रणखेत में तेरा जुर्म हैं संगीन ||
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां
7300174927