‘बदला जग मौसम भी बदला’
बदला जग बदला पल-पल,
बदला मौसम करता है छल।
रिस गई सावन की रिमझिम,
बुझी लगे जुगुनू की टिम-टिम।
कहाँ ढल गई डाल नीम की,
वो झूले वो उड़ान पींग की।
मेहंदी माहवर पायल चूनर,
छूट गया सावन में वधू नेहर।
कहीं उंडलता जल है अथाह,
कहीं बादल हुआ है बेपरवाह।
बाग बगीचे लुटे पिटे लगते हैं,
जहाँ देखो तहाँ मॉल सजते हैं।
छूटा पनघट पर पनिहारी रेला,
और सिल पर मसाले का ठेला।
सुने नहीं बाल नानी से कहानी,
छुप गए घट खोजे उसे पानी।