बदला अखबार, ना बदले लोग
जितनी तेजी से अखबार बदला
अखबार के साथ समय बदला
और अखबार के लोग बदलें ।
उतनी तेजी से मासूम लोग नहीं बदले
उनकी धारणा नहीं बदली
उनका विश्वास नहीं बदला !
अखबार पत्रकारिता का उत्कृष्ट माध्यम
पत्रकारिता लोकतांत्रिक व्यवस्था का अहम हिस्सा
लोकतांत्रिक व्यवस्था लोगों को शासक का भाव देता ।
अब मात्र खबर का अखबार है
निष्पक्ष नहीं पक्षपाती खबर
स्वतंत्रता खो दिया है
धन की छत्रछाया में अब खबर
बड़ी चालाकी से बड़े-बड़े उद्योगपतियों का
अपना एक अखबार
नहीं तो किसी अखबार पर
अपना एक दबदबा
नीचे आते-आते यह चालाकी गिरकर
पतीत हो गई
अखबार प्रचार करने में
संलिप्त हो गई
बिका हुआ
छेड़-छाड़ किया हुआ
अर्थ का अनर्थ
और अनर्थ को आकार
अखबार की रूपरेखा हो गई ।
पत्रकारिता धूल चाट रही
पैसों के लिए
सही है,सवाल है ईमान से बढ़कर
पेट के लिए
सबकी रोजी-रोटी चल रही है
क्या होगा देखा जाएगा बाद में
आपसी सम्बन्ध, आपसी हित
मिलजुल कर देता है साथ
अब इस काम में ।
बेचारे लोग उसी तत्परता से
खबर पढ़ते हैं
विश्वास रखते हैं
अपनी मानसिकता गढ़ते हैं
बाद में फिर खुद को
ठगा सा महसूस करते हैं ।
उन्हें सच-झूठ का
भ्रम हो जाता
आकार-विचार का समझ
उनका खोटा बन जाता ।
फिर भी खुद को धोखे में रखकर
वो खबर की विश्वसनीयता बनाए रखते हैं
क्या करें बरसों-बरस से
ये मानसिकता वो पाये रहते हैं !!!?