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13 Dec 2018 · 1 min read

बदलाव

रची रचना जो विधना ने, धूप के बाद छावं आएगा।
हो असत्य पे आरूढ़ सत्य, फिर से बदलाव लाएगा।।

तिमिर घोर हो अंधेर हो, भय की न कोई बात हो,
दिन निकल आता है चाहे, ब्याप्त कितनी रात हो।
शांत जल उन्मादी लहर, शिखर पे टकराव खाएगा।
हो असत्य पे आरूढ़ सत्य, फिर से बदलाव लाएगा।।

द्वेष लालच निज स्वार्थ खल का, तो सदा टिकता नही,
नेकी भले ही बे मोल हो, पर छाप अमिट मिटता नही।
खेच समय के पाटी पे, वक्त वही प्रस्ताव दोहराएगा।
हो असत्य पे आरूढ़ सत्य, फिर से बदलाव लाएगा।।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १३/१२/२०१८ )

Language: Hindi
3 Likes · 373 Views
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