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22 May 2024 · 1 min read

बदलाव

बारिश इस बार बरसती है खार सी
तल्ख़ी इसकी भी बड़ गई इंसान सी

हम भी नहाते थे तो तुम भी नहाए
पानी में तब ख़लिश न थी इस बार सी

पंछी उड़ बैठते कभी मंदिर कभी मस्जिद
जगह की पहचान नहीं इन्हें तो इंसान सी

ज़िंदगी ने मायने अपने इस तरह बदले
मौत भी लगने लगी अब तो इनाम सी

वायदे एक दूसरे को निभाने के ले रहे हैं लोग
मोहब्बत है या हो रही तिजारत सामान की

डा राजीव “सागरी”

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