“बदलाब की बयार “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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कप्तान राय साहेब का रोब अभी तक बरक़रार था ! आर्मी के गतिविधिओं ने उन्हें एक कड़ा और सशक्त इन्सान बना रखा था ! उम्र भले ही ७२ साल की हो चली थी पर चुस्ती -फुर्ती में आज के नौजवानों को दस कदम पीछे ही रखते थे ! गांव के आखरी छोर पर एक आलीशान घर बना रखा था ! उसके सजावट के चर्चे आस -पास के गांवों तक पहुँच गये थे ! हम जब भी अपने ससुराल जाते थे हम लोगों से उनकी खैरियत के विषय में पूंछते थे –
” राय जी गांव में ही रहते हैं ?
कुशल तो हैं ?”
इत्यादि -इत्यादि लोगों की प्रतिक्रिया सुनकर चौंक उठता था ! वे कहते थे –
” कौन राय जी ? …..हमें नहीं पता वे कभी किसी से मिलते ही नहीं ! समाज में रहकर भी सामाजिकता से सदैव किनारा बनाये रखते हैं “!
किसी ने तो यहाँ तक कहा –
” आप उनका नाम ना लें “!
किसी ने उन्हें अभद्रता की टिप्पणिओं से अलंकृत किया ! और तो और एक ने तो हमें देखते देखते हिदायत भी दे डाली –
” ऐसे व्यक्ति से आप दोस्ती करते हैं ?”
एक विचित्र छवि राय जी की गांव में बनती जा रही थी ! उनके तीन पुत्र हैं दो तो सेना में हैं और तीसरा पुत्र अंतर्जातीय विवाह करके पुणे महाराष्ट्र में रहने लगे ! उनलोगों की अपनी जिंदगी है !आये आये तो ठीक …….ना आये तो सौ बहाने बना लिए !
हम तो उनके साथ पुणे में रहे ……कुछ दिनों तक जम्मू में , पर वे तो ऐसे नहीं थे ! हमारी आत्मीयता शिखर पर पहुँच गयी थी ! पता नहीं शायद वो मेरे ससुराल के जो थे ! उनकी पत्नी के आगाध प्रेम को देखकर हमें लगता था कि हम अपने ससुराल में ही हैं ! राय जी हरेक रक्षा बंधन में हमारी पत्नी से राखी बंधवाते थे ! और इसी तरह हमारा प्रेम बढ़ता चला गया ! लोगों की विचित्र प्रतिक्रियें हमें चुभने लगी ! हमने भी राय जी का साथ दिया !-
” देखिये तालियां दोनों हथेलिओं से बजतीं हैं समाज का भी कुछ कर्तव्य होता है ”
कुछ लोग हमारी बातें सुन बोखला गए और हमें अपनी प्रतीकात्मक प्रतिक्रिया को शिष्टाचार के दायरे में कहने लगे –
“आप क्या जाने ओझा जी ! राय जी तो समाज में रहने लायक ही नहीं हैं !आपको अच्छे लगते हैं तो इसमें हमारा क्या ?”
हमारी मित्रता तो बहुत पुरानी है ! आखिर हम दूर कैसे रह सकते हैं ?गांव के ही चौक से १ किलो रसगुल्ला ख़रीदा और हम और हमारी पत्नी उनके घर पहुँच गये ! हमने अपने बाइक की घंटी बजायी …..कई बार डोर बेल्ल के बटन को भी दबाया ! बहुत देर के बाद राय जी की धर्मपत्नी निकली और आश्यर्यचकित होकर कहा –
” आइये ….आइये कैसे हम याद आ गए ?”
आँगन में प्रवेश ही किया था कि राय जी घर से बाहर निकल अभिवादन किया ! सफ़ेद दाढ़ी बड़ी हुयी थी …..कुछ अस्वस्थ्य दिख रहे थे …..हम ज्योंहि उनके बरामदा में घुसने लगे …उन्होंने कहा –
“आपको जूता उतरना पड़ेगा “!
हमने जूते और मौजे उतार दिया ! फिर हम अंदर गए ! इसी बीच क्रमशः हमारे मोबाइल कॉल आने लगे ! ख़राब नेटवर्क चलते कभी बहार और भीतर हमें करना पड़ा …..वो भी नंगे पैर ! इन शिष्टाचार के बंदिशों से हमारे पैर दुखने लगे थे …..और तो और……. पुरे नंगे पैर से सम्पूर्ण घर की प्रदिक्षणा भी उन्होंने करबाया ! शिष्टाचार तो यह भी होना चाहिए था कि अपने घरों में अलग चप्पल रखें जायं ! सम्पूर्ण घरों की खिड़कियां को जालिओं से ठोक -ठोक के तिहार जेल का शक्ल उन्होंने बना दिया था !
राय जी के घुटने में दर्द रहा करता था !हमने पूछा –
” यह दर्द कब से है ?””
देखिये ना …..यह दो सालों से मुझे सता रहा है ”
-उन्होंने जबाब दिया ! मच्छरों के रास्ते तो इन्होंने बंद कर रखा है ! पर फर्श की शीतलता और नंगे पैर चलना हड्डी की बिमारिओं को इन्होंने आमंत्रण दे रखा है ! इसी क्रम में हमने उनसे पूछा –
“राय जी …..आप इतने अलग -अलग क्यूँ रहते हैं ?
आपके …… कार्यों …आपके ….अदम्य साहस के लिए सरकार ने आपको सम्मानित भी किया ,पर आप सामाजिक परिवेशों से दूर कैसे होते चले गए ?”
हालाँकि हमारे पूछने पर स्तब्ध हो गए ! उनकी मौनता कुछ हद्द तक समाज को भी जिम्मेबार मानती है ….पर अंततः उन्होंने आश्वाशन दिया कि “बदलाब की बयार “उनकी ओर से बहेगी जरूर ! इस बदलाब की प्रतीक्षा में हमने उनसे विदा लिया और पुनः आने का वादा भी किया !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका