” बदलते सुर “
कोई किसी गलत के खिलाफ
जब आवाज़ उठाता है
तो उसके विरूद्ध खड़े होकर
तुम्हारा सुर एक अलग राग गाता है ,
थप्पड़ खाने वाला ही तो
तिलमिला कर चिल्लाता है
थप्पड़ मारने वाले को चुप देख कर
तुम्हारा सुर एक अलग राग गाता है ,
यही हालात हर घर – शहर
प्रदेश और देश भोगता है
खुद को इनसे अलग मान कर
तुम्हारा सुर एक अलग राग गाता है ,
ये अलग से सुर वालों का सुर
बिना ताल का बड़ा बेसुरा होता है
इनको सुरों की जरा भी समझ नही
इनका सुर एक अलग राग गाता है ,
एक दिन जब थप्पड़ खाने वाला
पलट कर थप्पड़ मारता है
इन्हीं अलग सुर वालों का सुर
उसके साथ मिल जाता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/10/2020 )