बदलते रिश्ते
शुभ संध्या
स्नेह का धागा, संवाद की सुई
और क्षमा की दो बूंद
जीवन की चादर में
उधड़ते रिश्तों की,तुरपाई कर देती है..!
??जय जिनेन्द्र??
फिर दिसंबर की धूप ढली ,
फिर जनवरी की आँख खुली।
लेकर अँगडाई ओस की बूंद
पल्लवों पे इतरा बिछने लगी।
कतरा -कतरा भाप के भी
संवादों मध्य जुड़ने लगे ।
कॉफी -चाय के प्याले भी
आपस में बतियाने लगे।
ए.सी.कूलर के छूटे पसीने
सर्दी को वो कोसने लगे ।
रजाई,कंबल को लोग भी
सँभाल-सहेजने लगे।
वक्त वक्त की बात है यारों,
कुछ तो अहम् छोड़ मान लो,
आज हम ,कल तुम फिर कोई ओर
जरुरत पर काम आने लगे।
सच्चे रिश्तों की डोर के बंधन
टूट के भी नहीं टूटते कभी।
कड़वे संवादों के ताने बाने
नया भरोसा बुनने लगे।
@पाखी_मिहिरा