बदलते उपमान और नायिका
छरहरी कलगी बाजरे सी न हो
छिटकी कली गुलाब सी न हो
उन्मुक्त,चंचल,मदमस्त,मदहोश
बयार सी हो मेरी नायिका।।
बालारूण की किरण सी न हो
वृध्दारूण की किरण सी न हो
थोड़ी उज्ज्वल थोड़ी सी श्यामल
दोपहरार सी हो मेरी नायिका।।
अनय पर रूकने वाली न हो
सनय पर झुकने वाली न हो
सच की पाक्षिक मिथ्या विरोधी
तकरार सी हो मेरी नायिका।।
झरनों की कलकल सी न हो
सागर की गांभीर्य सी न हो
जरा सी हलचल जरा गंभीर
मझधार सी हो मेरी नायिका।।
आदिकाल सी दबी न हो
भक्तिकाल सी रमी न हो
रीतिकाल सी छली न हो
आधुनिक सी बली न हो
बदलते हुए परिवेश में
सदाबहार सी हो मेरी नायिका।।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “