बदलती जरूरतें बदलता जीवन
जरूरतें बदलती हैं तो इंसान बदल जाते हैं, इंसान जरूरतमंद है,
जगह बदलती है, घर बदलता है, और रिश्ते बदल जाते हैं ।।
माता-पिता भाई बहिन के स्थान पर बीबी बच्चे हो जाते हैं,
मित्रों के स्थान पर ऑफिस के कुलीग बदल जाते हैं ।।
जहाँ पैसे कमाते हैं वही नए स्थान अपने घर हो जाते हैं,
घर, गलियां, मोड़, बैठकी सब गुजरे जमाने हो जाते हैं ।।
आईने में धीरे-धीरे सबके चेहरे भी बदल जाते हैं,
जितना दूसरों के बदलते हैं उतना अपने भी बदल जाते हैं ।।
बदलते हैं ना केवल ये घर, जमीन, रिश्ते, दौलते एवं शोहरतें,
इंसान खुद भी उतना बदलता है जितनी बदलती हैं उसकी जरूरतें ।।
एक जरूरत पूरी होते ही दूसरी जरूरत उभर आती है,
जरूरतें समुद्री लहरें है एक किनारे लगते ही दूसरी निकल आती है ।।
prAstya….(प्रशांत सोलंकी)