बदलता वक्त
रिश्ते बदल गए समय की रफ़्तार में
संसार डूबा है मोबाइल की धार में।
छूट गई पगडंडियाँ थी जो पाँव तले,
अब घूमते कहाँ पावों से
घूमते हैं कार में।
मेल-मिलाप पहले सा होता नहीं,
आनेवाले मेहमान भी भाता नहीं।
बूढ़े खड़े,फैलकर बैठते अब हैं युवा,
बच्चे भी बड़ों से ज़रा भी शर्माते नहीं।
ननद भी करती नहीं ठिठोली,
देवर अब खेले नहीं है होली।
बाग बिक गए गाँव के सगरे,
कोयल की न सुनाई देती है बोली।
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गोदाम्बरी नेगी
स्वरचित एवं मौलिक