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9 Mar 2022 · 1 min read

बदमाश साहब का मानवाधिकार (हास्य कविता )

बदमाश साहब का मानवाधिकार (हास्य कविता )
————————————————-
महिला के गले से
सोने की चेन खींचकर जब भागा बदमाश
तो महिला ने चिल्लाया।

चीख सुनते ही
बदमाश महिला के पास आया
कहा ” आपका चिल्लाना असंवैधानिक है
इसमें मेरी निजता का हनन है,
आपका यह मनमानापन है ।”

महिला हुई परेशान, कहा
“हमारी ही चेन खींचते हो
और हमें ही संविधान सिखाते हो
कौन से देश प्रदेश से आते हो ?”
बदमाश बोला “ज्यादा चूँ – चपड़ मत करो,
पल्लू सर पर धरो ।
और सीधे अपने घर जाओ
वरना यह बताओ
कि संविधान की किस धारा के अंतर्गत तुमने मेरे ऊपर चिल्लाया है ?
मेरी स्वतंत्रता पर अपनी निरंकुशता का हंटर चलाया है । ”

इसी बीच कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता
घूमते- घूमते वहाँ पर आए,
और महिला पर चल्लाए ।
कहने लगे “बदमाश के मानवाधिकार का उल्लंघन कभी भी भूल कर मत करना,
चेन खिंचे तो धीरज धरना।

अब धीरे – धीरे हल्के कदमों से
अपने घर की तरफ कदम बढ़ाओ ,
जो हुआ-सो हुआ
उसे भूल जाओ ।
————————————————-
लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर(उ.प्र.)

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