बदनसीब लाइका ( अंतरिक्ष पर भेजी जाने वाला पशु )
मासूम सी लाइका,
अनजान थी ।
सड़क पर घूमना ,जीना मरना,
सड़क छाप उसकी पहचान थी ।
ले गया उसे एक व्यक्ति ,
अचानक सड़क से उठाकर ,
इस तरह क्यों ? सोचकर हैरान थी ।
ले जाकर उसे अपने घर,
अच्छा खिलाया पिलाया ,उसकी सेवा की ,
जैसे वो उसकी बनी जान थी ।
कुछ समय बाद उस को कुछ प्रशिक्षण दिए गए,
जिनको करते हुए वो हुई परेशान थी ।
फिर एक दिन ऐसा आया,
उसे बिठाया गया विशेष यान में ।
भेजने को अंतरिक्ष की अंतहीन यात्रा हेतु ,
जिसके सफर से वो बिल्कुल अंजान थी ।
वो कुछ समझ भी न पाई ,
जैसा वो उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के हाथ का खिलौना थी।
बिठा दिया दम घोटू यान में,
जिसमें बैठने पर हो रही असहज थी ।
कुछ दिन अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष पर चक्कर काटता रहा ,
और वो अपने आप से जूझती रही ।
जीवन और मृत्यु के बीच ,
बेचारी कुत्तिया झूलती रही ।
आखिर कब तक लड़ती अपने दुर्भाग्य से,
आखिर एक दिन उसकी श्वासों की डोरी टूट गई ।
और फिर बेचारी ,असहाय पशु ,
अंतरिक्ष यान के साथ ही टूट कर अंतरिक्ष में ही खो गई ।
हाय री भोली लाइका!
तू स्वार्थी मानवों के अमानवीय कृत्य के भेंट चढ़ गई ।
प्रयोग के नाम पर की गई हत्या की शिकार हो गई ।
अब जान गंवाकर समझ आया तुझे ,
तू उनके लिए जीव नहीं ,मात्र एक घृणित अभियान थी ।