बदगुमानी दिल से निकालें
हरिक बदगुमानी को दिल से निकालें,
हमें तुम संभालो, तुम्हें हम संभालें।
अभी से यह जीवन बिखरने लगा है,
नज़र एक दूजे की जानिब घुमा लें।
अगर ग़म को बदनाम करने नहीं है,
चलो बंद कमरे में आंसू बहा ले।
कभी गैर को दरमियां तुम न लाना,
हमें तुम मना लो, तुम्हें हम मना लें।
यहां कोई अपना हितैषी नहीं है,
यही वक़्त है आओ खुद को संभालें।
हमें खुद लगाना है ज़ख्मों पे मरहम,
अगर हो मुनासिब तो खुद को बचा लें।
यही रतजगे फिर से’ डसने लगे हैं,
लगे आंख तो ख्वाब हम भी सजा लें।