बता रहा चेहरा तिरा कल कि दास्ताँ, जान-ए-जाँ हम को
बता रहा चेहरा तिरा कल कि दास्ताँ, जान-ए-जाँ हम को
पुछा शबे-वाकि’आ जो हमने, बात से वो मुक़र गए है।
कि ग़ालिबन अब ख़ुमार भी तो नही रहा मय-ए-आतिशीं में
ये लोग कहने लगे है की वो, नबाब साहब सुधर गए है।
मिला मिला ना मिला हमें वो जिसे मिला ख़ुश नहीं रहा वो,
सुनो बहुत देर हों गई आने में, वो जो थे गुज़र गए है।