बता जमूरे !
बता जमूरे !
बता जमूरे !
नाचेगी कबतक रस्सी पर !
छोटी-सी यह बच्ची |
एक मदारी के कुनबे का,
वह है कुशल सदस्य,
बना हुआ है जीवन उसका,
अबतक अटल रहस्य,
धंधे पर बस लगी हुई है,
उमर बहुत है कच्ची |
समझबूझ अनबूझ पहेली,
रोटी एक समस्या,
पता नहीं, कबतक पूरी हो,
साधनहीन तपस्या,
कबतक भूख करेगी रह-रह,
झंझट, माथापच्ची |
भूख-प्यास है एक कसौटी,
जीवन एक तमाशा,
बुद्धिवाद भी बजा रहा है,
मात्र स्वार्थ का ताशा,
आँखों देखी एक ख़बर यह,
और बात है सच्ची |
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ
04.03.2023