बताती जा रही आंखें
गीतिका
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कहो गंभीरता से अब नहीं पड़ना ठिठोली में।
बताती जा रही आंखें सभी बातें अबोली में।
समय मुश्किल कभी जब सामने आता हमारे है।
रखो आंखे खुली पड़ना नहीं है व्यर्थ बोली में।
दुआएं साथ हो तो खूब कहलाती चमत्कारी।
असर होता बहुत है तब दवा की एक गोली में।
सभी का जीत लेता मन तराना खूब कोयल का।
मधुर रस के निरंतर गूंजते स्वर नित्य बोली में।
सभी जन हर्ष से झूमे मिटी जब प्यास धरती की।
बरसते सावनी घन हर खुशी है आज झोली में।
विजय होती सुनिश्चित जब सभी का साथ मिल जाए।
इरादे हों बहुत दमदार सूरत खूब भोली में।
मधुर हैं रागिनी के स्वर सुनाई दे रहे सबको।
बहुत आनन्द मिलता है सभी को मस्त टोली में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य