24/243. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
वह आदत अब मैंने छोड़ दी है
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
भाग्य
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
"" *प्रेमलता* "" ( *मेरी माँ* )
एक एक ईट जोड़कर मजदूर घर बनाता है
औरत की दिलकश सी अदा होती है,
"आतिशे-इश्क़" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
जो भी मिल जाए मत खाओ, जो स्वच्छ मिले वह ही खाओ (राधेश्यामी छ
हम उस महफिल में भी खामोश बैठते हैं,
मनु-पुत्रः मनु के वंशज...
खुदा ने तुम्हारी तकदीर बड़ी खूबसूरती से लिखी है,
लहरें जीवन की हों, या जल की ..
ये दौलत भी लेलो ये सौहरत भी लेलो
दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'