बढ रही है दूरियाँ
नजदीकियाँँ बन गई दूरियाँँ
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
चेहरे दिखते नहीं रंगीन हैं
भाव रत नहीं भावहीन हैं
नित बढ रहीं हैं परेशानियाँ
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
दिल हो गए हैं अब खोखले
प्यार दर्शाने मात्र हैं ढकोसले
चेहरा खुशनुमा हैं मजबूरियां
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
जिंदगी होने लगी गमगीन हैं
हर्षित लम्हों के बिना दीन हैं
सिमटने लगने गई हैं खुशियाँ
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
औपचारिकताएं रह गई शेष हैं
द्वेष,वैर,स्वार्थ जीवन अवशेष है
उजड़ गई हैं फूलों की क्यारियाँ
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
किसी में नहीं रही है इन्सानियत
हद से बेहद बढ रही हैवानियत
भेंट चढ रही हैं ब्याही कुँवारियाँ
बढ रहीं हैं यहाँ वहाँ दूरियाँ
दूरियाँ बन गई हैं मजबूरियाँ
नजदीकियाँँ बन गई दूरियाँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत