बढ़ते जाना है
* गीतिका *
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स्नेह भरे जीवन का अनुपम, साथ हमारी हस्ती में।
आगे ही बढ़ते जाना है, हमको पूरी मस्ती में।
सावधान रहना है सबको, हर पल आपस में मिलजुल।
अब कुछ आग लगाने वाले, घुस आए हैं बस्ती में।
बात बेतुकी बहुत हो गई, करके ठोस दिखाएं कुछ।
देखो कुछ भी नहीं रखा है, लोकप्रियता सस्ती में।
क्षमता के अनुरूप कीजिए, कार्य सभी निज जीवन के।
व्यर्थ कीमती समय कभी मत, खोना फाकामस्ती में।
स्वाभिमान से जीना हमको, दुनिया में आगे रहकर।
स्वीकार नहीं करना जीवन, किसी की सरपरस्ती में।
खिल जाते हैं फूल समय पर, महका देते हैं उपवन।
सहज भाव से कार्य करें सब, पड़ें क्यों जबरदस्ती में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०७/१०/२०२२