बढ़ती गर्मी
ललित निबंध
विषय-बढ़ती गर्मी
भारतवर्ष की भूमि अनेक गुणों की खान है। उनमें एक सबसे बड़ा गुण यहां की अत्यंत मनोहर प्रकृति है। भारत में सभी ऋतुएं बार -बार आती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में ऋतुओं का अपना-अपना महत्व है। कुछ राज्यों में सम मौसम रहता है और कुछ राज्यों में ऋतुएं अपना -अपना रंग दिखाती हैं ।भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में सर्दियों में अत्यधिक ठंड के कारण पर्वत भारी हिम से श्वेत धवल हो जाते हैं। नदी- नालों में पानी जम जाता है। सूर्य की उष्मित किरणें पढ़ने से हिम धीरे-धीरे पिघल कर पानी रूप में बदलने लगता है और छोटे-छोटे नालों का रूप ले कर बहने लगता है। वातावरण अधिक ठंडा हो जाता है। सर्दियों के बाद बसंत और ग्रीष्म ऋतु के क्या कहने? हिम दल पिघल कर नदी -नाले भर देता है, पेड़ पौधों पर नवजीवन का संचार होता है, नवीन पल्लव पुष्पगुच्छ वातावरण को महका देते हैं ।प्रकृति अलकापुरी बन जाती है।
पर्वतीय क्षेत्रों की एक बात खास होती है कि यहां गर्मी का प्रकोप अधिक नहीं होता। मौसम सुहाना होने के साथ-साथ अधिक रमणीय होता है। यहां की बरसात भी अधिक प्रकोप नहीं ढाती। भारी वर्षा होने के कारण भी पानी एक स्थान पर नहीं ठहरता। कुछ पानी को भूमि सोख लेती है और बाकी पानी ढलान की ओर बह कर नदी- नालों में मिल जाता है। इसके विपरीत समतल क्षेत्रों में शीत ऋतु सुहावनी होती है। सूर्य देव प्रातः जल्दी आकर अपनी ऊष्मा से वातावरण ऊश्मित कर देता है। जनजीवन अपने -अपने कार्यों में व्यस्त हो जाता हैं। बसंत ऋतु अधिक सुहावनी होती है। दूर-दूर तक सरसों के पीले -पीले खेत मन को हर लेते हैं। पेड़ पौधों पर तरह-तरह के फूल वातावरण सुगंधित कर देते हैं, परंतु जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है वातावरण में गर्म हवाएं भी तन को जलाने लगती हैं। पानी का अत्याधिक आभाव हो जाता है। सड़कों पर गर्मी अपना प्रभाव डालती है ।सूर्य की तेज किरणों से सड़के तवे की तरह गर्म हो जाती हैं। पशु और जोजन नंगे पांव चलते हैं उनका चलना दूभर हो जाता है। पशु-पक्षी प्यास से मरने लगते हैं ,जन जीवन में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। दस्त -उल्टिओं के कारण चिकित्सालय भर जाते हैं। वातावरण धूल -मिट्टी, मक्खी -मच्छरों से भर जाता है। अधिक गर्मी के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है। सभी लोग व पशु -पक्षी गगन की ओर बादलों के छा जाने के लिए निहारते रहते हैं। वर्षा ऋतु में वर्षा तो होती है परंतु इसकी चिपचिपी गर्मी भी असहनीय होती है। पानी तो मिल जाता है पर मक्खी -मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। यहां पर अधिकतर लोग बाढ़ की चपेट में आकर बेघर होकर बीमारी और भुखमरी के शिकार हो जाते हैं। जनजीवन अधिक अस्त-व्यस्त हो जाता है। जैसे -तैसे वर्षा ऋतु बीत जाती है ।शीत ऋतु पुनः प्रवेश करती है ।जनजीवन फिर से सुधरने लगता है परंतु कालचक्र फिर बढ़ने लगता है ।नियति फिर अपने चक्कर पर चलती है।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश