बडी गांठ गहरी पडी जो दिल में-
गिरने का देखो जमाना हि आया।
शेयर गिर रहा है हेयर गिर रहा हैं ।
समझता था ऊपर चढे वो है गिरते
मगर जो है नीचे वही गिर रहे हैं ।
क्या बात है सच का साथी रहा जो
वही घिर रहा है सही घिर रहा है ।
गिराने की ख्वाहिश रही दिल में जिसके
मुझे तो गिराने में खुद गिर रहे है ।
गिरने का देखो जमाना हि आया।
शेयर गिर रहा है हेयर गिर रहा हैं ।
कहीं पर चढ़ा भाव आलू के देखो
कहीं प्याज उछली नभ छू रही है ।
मगर यह भी देखा भाव भारी है जिसका
उसकी नियति दर कदम गिर रहा है ।
गिरने का देखो जमाना हि आया।
शेयर गिर रहा है हेयर गिर रहा हैं ।
साधु का गुण है समभाव रहते
मन था सदा खुश और थिर रहा है ।
बढती जब लालच का मुख बढ गया है ।
गिरने की सीमा तक वह गिर गया है ।
गिरने का देखो जमाना हि आया।
शेयर गिर रहा है हेयर गिर रहा हैं ।
गिरने की सीमा न कोई रही आज तक है
सबसे हि ज्यादा नियति गिर रहा है ।
कहते भी कैसे किसी को बुरा यूँ
जब पल पल लोगों कि मति गिर रहा है ।
कीमत तो गिरती है फिर उठ सकी हैं
पर मति का गिरा न कभी कभी उठ सका है ।
नजर से गिरा फिर न उठता है जन मे
बड़ी गांठ गहरी जो पडती है मन में ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र “विप्र ”
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