बड़ी मिहनत लगाते है करीने से सजाने में,
ग़ज़ल
******
बड़ी मिहनत लगाते है करीने से सजाने में,
कई रातें गँवा देते गजल अच्छी बनाने में !
न जाने कौन सी जादू कलम इनके लगी हाथों,
नहीं देरी लगाते जो, ग़ज़ल झटपट रचाने में !
चुराकर शेर शाइर के उसे अपना बता देते
बड़े शातिर ये होते है कलाकारी दिखाने में !
बड़े मशरूफ हमेशा ही नज़र आते है ये साहिब
लगे रहते अजी तारीफ़ खुद की ही जताने में !
कही की ईंट तो रोड़ा कही का जोड़े बना देते,
बड़े माहिर है वो यारो यूँ लफ्जो को भिड़ाने में !!
***
!
डी के निवातिया