बड़ी दीदी ( स्व बड़ी दीदी{ननद }की स्मृति में)
सभी रिश्तों की डोर ,
मजबूती से बांधे रखती थी ।
दीदी सबकी परवाह करती थी ।
घर में कोई भी आए ,
गर्मागर्म समोसे और चाय ,
मंगवा कर परोसती थी ।
दीदी अतिथि सत्कार में निर्पूण थी ।
भोजन के समय यदि कोई ,
घर आ जाए तो वो भूखा न जाता था।
जो भी रूखा सूखा मगर ,
प्यार से खिलाती थी ।
दीदी सब के लिए प्रेम भाव रखती थी ।
कोई गम हो या ,
संकट की घड़ी ।
हर समय साथ खड़ी मिलती थी ।
दीदी बड़ी हमदर्द थी ।
अपनी संतानों पर जान छिड़कती थी ,
मगर भतीजे ,भतीजी और भांजियों पर भी ,
अपनी ममता न्योछावर करती थी ।
दीदी ममता और स्नेह की मूरत थी ।
अपने भाई का दाहिना हाथ थी ,
और भाभी की अंतरंग सहेली ।
कोई जरूरी काम आन पड़े या ,
कहीं सैर पर जाना ।
कदम कदम पर सहयोग / साथ देती थी ।
दीदी सच्ची हमसफर थी ।
घर परिवार की सारी जिम्मेदारियां,
चाहे वो अपने भाई बहन की भी क्यों न हो ।
सबको संपन्न करने में कुशल थी ।
दीदी बड़ी व्यवहारिक और कार्यकुशल महिला थी ।
मगर हाय ! तकदीर का ये कैसा सितम ,
समय की ऐसी मार पड़ी ,दीदी को खो बैठे हम ।
वो घड़ी बड़ी दुखदाई थी ।
दे गई हमें उम्र भर अपनी जुदाई का गम ।
वो दीदी जो हम सबकी जान थी ।