बड़ी चाहत थी कि इश्क़ कर लूँ
बड़ी चाहत थी कि इश्क़ कर लूँ
बस यही सोचती रही
कि इज़हार कर लूँ,
आधे तुम और आधी मैं
चाहत थी कि पूर्ण कर लूँ,
तुम भी खामोश रहे
मैं भी मौन रही
लबों पर कुछ शब्द छू लूँ
काश कोई बोलती शाम कर लूँ…..
क्यों खामोश नज़रों से
तकते रहे तुम, मैं चुप थी तो
बात दिल की बता ही देते तुम,
जो आया था ख़्वाब दबे पांव
चाहत थी उन ख़्वाबों को सच कर दूँ,
नज़रों से फिसलकर जो
मुहब्बत दिल में घर कर गई
चाहत थी उसका इज़हार कर दूँ
बड़ी चाहत थी कि इश्क़ कर लूँ…..
निगाहों से भेज रही पैगाम
आज बात दिल की बता देना तुम,
रूह में मेरी जो याद बन कर समा जाये
दिल में दबे उन जज़्बातों को
कुछ तो नाम दूँ,
या तुझे पन्नों में उतार
अपनी मुहब्बत को अंजाम दूँ,
तुझे पाने की उम्मीद से
कुछ पल गुलज़ार कर लूँ
बड़ी चाहत थी कि इश्क़ कर लूँ।
रचयिता–
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’