बजाने के तजुर्बे जो हमे आ जाते।
बजाने के तजुर्बे जो हमे आ जाते।
हम भी तुम्हारी महफ़िल में छा जाते।।
रीतियां नीतियां बदली नही हमने अपनी,
ऐसे में साथ तुम्हारे कैसे गा पाते।।
सुनाते रहो सुमधुर स्वर तुम्ही हमे अपने।
रखना याद राग हमें बेसुरे कहां सुहाते।।
धन दौलत के पीछे भागे जा रहा जमाना।
भर जाए पेट हम तो इतना सा कमाते।।
ढंका रहे तन हमारा संस्कृति के परिधानों से।
ऐसी वैसी वेशभूषाओं से हम तो लजाते।।
चलना चाल “अनुनय” सदा ही सीधी तू तो।
रास्ते भटकाने वाले लक्ष्य नही पंहुचाते।।
राजेश व्यास अनुनय