बच्चों को न बनने दें संकोची
आज इंटरनेट के युग में जब न बच्चे एक्टिव और स्मार्ट है, वहां कुछ बच्चों का संकोची स्वभाव अर्थात शर्मीलापन निश्चित ही उनके सर्वांगीण विकास में बाधक है। अधिकतर बच्चों में संकोच की भावना पाई जाती है बहुत कम ही ब बच्चे ऐसे होते हैं जो निःसंकोच सबसे मिलते जुलते, हंसते, खेलते ज हैं। बच्चों में संकोच की भावना का होना उनके आत्मविश्वास के अभाव को दर्शाता है, इसके पीछे उनका यह भय होता है कि कहीं उनके मुंह से कुछ गलत न निकल जाये या कहीं कोई उनकी हंसी न उड़ायें । ये ऐसे भय है जो बच्चों को संकोची बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों के संकोची स्वभाव की समस्या के समाधान के लिए व उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें-
• सर्वप्रथम माता-पिता का कर्तव्य बनता है कि वह बच्चे के संकोची स्वभाव के कारणों का नकारात्मक लहजे में बात न करें। • बच्चों के साथ पर्याप्त समय व्यतीत करें।
* बच्चों को खेलने कूदने के लिए पर्याप्त समय दें।
* अपने बच्चे की किसी अन्य बच्चे से भूलकर भी तुलना न करें।
* बच्चे की क्षमतानुसार ही उनसे अपेक्षाएं रखें।
* बच्चे को उसके मन चाहे कार्य करने के लिए प्रेरित करें, इससे • उसका उत्साह बढ़ेगा।
*बच्चे आपके लिए कितना महत्व रखते हैं, इस बात का एहसास. बच्चे को अवश्य करायें।
*बच्चे को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का पूर्ण अवसर प्रदान कराना चाहिए, संकोची स्वभाव के कारण प्रायः बच्चे अपने मन के ‘भावों को सरलता से व्यक्त नहीं कर पाते।
*बच्चों में सामाजिक परिपक्वता उत्पन्न हो इसके लिए माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चे को समाज के महत्व के साथ रिश्तों का महत्व भी समझाएं।
* बच्चा संकोची न बने इसके लिए माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के समक्ष कभी भी वाद-विवाद या लड़ाई-झगड़ा न करें ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद