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8 Jul 2019 · 2 min read

~ बच्चों की शैतानी ~

संस्मरण : बच्चों की शैतानी
@दिनेश एल० “जैहिंद”

बच्चे गजब के शैतान होते हैं | कोई-कोई बच्चे तो शैतानी की हद पार कर जाते हैं |
मगर कुछ-एक बच्चे बड़े सीधे-साधे होते हैं |
आप मेरा उदाहरण ले सकते हैं ! अरे ! हँसिए नहीं, मैं कोई अविश्वसनीय बात नहीं कह दिया हूँ | ये बगल वाले भाई मेरे लंगोटिया यार रहे हैं | इन्हीं से पूछ लीजिए,
क्या मैं झूठ कह रहा हूँ ? आपको जवाब मिलेगा- नहीं !

लेकिन मैं कब तक सीधा बना रहता भला !
शैतान बच्चे अपने साथ घसीटकर शैतान
बनने पर मजबूर कर ही देंगे ! फिर तो शैतानों की टोली के साथ मैं भी शैतान
बन गया |

और मोहल्ले में मेरी भी गिनती शैतान
बच्चों में होने लगी | शरारती बच्चों के साथ मिलकर मैंने भी कुछ शैतानियाँ कभी-
कभार की हैं | ऐसे ही बचपन की एक शैतानी थोड़ी बहुत याद आती है | मैं कोई उम्र से बारह-चौदह का रहा होऊँगा |
हम बच्चों को किसी-न-किसी तरह से यह राज मालूम हो गया था कि इन छिपकलियों की पूँछ मौका-ए-वारदात टूट या कट जाती है और पुन: इनकी पूँछ धीरे-धीरे बढ़ जाती है | हम बच्चों को यह जानकारी बहुत अजीब व कौतुहलपूर्ण जान पड़ी | फिर तो हम बच्चों की टोली इस जानकारी का अंजाम प्रत्यक्ष देखने के लिए उचित वक्त की तलाश में भटकने लगी |

एक दिन ऐसा मौका भी आया | दिन नें सारी छिपकलियाँ अँधेरे में या कोने में छिपी रहती हैं, किन्तु जैसे ही शाम अपने पाँव पसारती है और बिजली की बत्तियाँ जलती हैं वैसे ही
सारी छिपकलियाँ कीड़े-मकोड़ों की तलाश में दीवारों पर विचरण करने लगती हैं |

बच्चे ताक में थे ही, दीवारों पर विचरते छिपकलियों को देखते ही शोर मचाने लगे |
देखते-देखते आठ-दस बच्चों की जमात हाथों में छोटे-बड़े डंडे लेकर उन छिप-
कलियों पर टूट पड़ी | मैं कहाँ पीछे रहने वाला था | मैं भी टोली में एक डंडा लेकर शामिल हो गया | फिर तो बिन बुलाए मेहमानों की तरह आ पड़ी छिपकलियों
पर शामत |

हम सब बच्चे हल्ला मचाते हुए डंडे लेकर छिपकलियों पर टूट पड़े | देखते-ही-देखते कितने ही छिपकलियों की पूँछें काट डाली | किसी की आधी तो किसी की पूरी तो किसी की जरा-सी | सारी छिपकलियाँ बेचैन इधर- उधर भागती रहीं, पर जान कहाँ बचने वाली थी | उस दिन तो उनकी शामत आई थी |

पूरे डेढ़ घंटे तक शोर-शराबे के साथ छिपकलियों की पूछें काटते रहे हम और कोई वहाँ हमें बोलने वाला न था | जब हम पूरी तरह उछल-कूदकर थक गए तब कहीं
जाकर इस शरारती व खूँखार उदंडता को हमने बंद किया |
बाद में हम सब कुछ-एक छिपकलियों की तलाश कर यह जाँचते रहे कि क्या उनकी पूँछें आई हैं और आई है तो कितनी
आई है ?

==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
07. 01. 2019

Language: Hindi
1 Like · 1005 Views

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