बच्चों की दुनिया: माँ या मोबाइल
बच्चों की दुनिया : माँ या मोबाइल
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आजकल के बच्चों की दुनिया
मां से ज्यादा मोबाइल है,
यह कहना बड़ा आसान है
पर इसके जिम्मेदार भी तो हम और आप हैं।
आज एकल परिवारों का दौर बढ़ रहा है
अपने बच्चों के लिए हमारे पास समय नहीं है।
हम उन्हें प्यार दुलार नहीं देने का
समय तक नहीं निकाल पाते,
अपनी सुविधा के लिए ही हम
उन्हें मोबाइल की लय हैं लगाते।
फिर बाद में खीझते हैं
चीखते चिल्लाते, डांटते मारते हैं,
अपने फेसबुक व्हाट्सएप इंस्ट्राग्राम और रील के लिए
हम खुद उनकी ख्वाहिश को व्यवधान मानते हैं,
बस अपनी सहूलियत के लिए
कुछ माह का होने पर हम ही
उन्हें मोबाइल का गुलाम बनाने लगते हैं,
सच तो यह है कि हम ही उन्हें जिद्दी बनाते हैं।
आजकल के बच्चों की दुनिया
मां बाप से ज्यादा मोबाइल है,
क्योंकि मां बाप की भी तो यही च्वाइस है।
जब हमारे पास अपने बच्चों के लिए
बिल्कुल समय ही नहीं होगा
तब हमारे बच्चों की दुनिया मां या बाप नहीं
सिर्फ और सिर्फ मोबाइल ही तो होगा।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित