‘बच्चों का त्योहार पिता’
बच्चों का बाजार पिता,
खिलौनों का व्यापार पिता।
खुशियाँ आंगन बनी रहे,
हर घर का है त्यौहार पिता।
मेला ठेला पर्व का कोष,
उत्साह का अपार वो जोश।
जादू की जब छड़ी चलाए,
मिट जाता नन्ह-मुन का रोष।
घोड़ा हाथी वही सवारी,
बैठे लड़का लड़की बारी बारी।
गुड्डा गुड़िया फिरकी चर्खी
साइकिल की भी कराए सवारी।
किसी से जब झगड़ा हो जाए,
पिता के नाम से धौंस जमाए।
भाई बहन की छीना झपटी,
आकर वही फिर सुलह कराए।
-गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड