बच्चे
अपना जीवन दिखता है
बच्चे जब बच्चे होते है।
खुश होते बच्चों के स॔ग
जब वो होते छोटे किशोर
लगता जैसे मेरे ही अंग
होताधमाल मचता है शोर
पापा जैसा दूजा न कोई
हर क्षण हर पल हर घड़ी
वो मुझमे में औ मैं उनमे
गैरोंसे क्या क्यों कर पड़ी
दुख-सुख या भाव अभाव
जो समझाया समझ गये
हर हाल स्थिति परिस्थिति
नही जिद, कहा मान गये
बेटी शादी होने जाने पर
जब घर छोड़कर जाती है
होता अलग बदन टुकड़ा
रूहशरीर छोड़के जाती है
बहू किसी – घर का चिराग
रोशन करती अबअपना घर
बेटे के संस्कार दिखे अपने
सब गलेलगाओ अपना कर
अपना जीवन दिखता है
बच्चे जब बच्चे होते हैं।
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर
प्रकाशित