बच्चे मन के सच्चे “बाल दिवस कविता”
ये नन्हे मुन्ने बच्चे, कितने मन के होते सच्चे ।
तुतलाते हुए जब ये बोलें, मन को लगते अच्छे ।।
न जाने छल कपट ये, मन को मोह जाते हैं ।
अपने हों या गैर, ये सबसे घुल मिल जाते हैं ।।
चहकती चिड़ियों सा, मधुर संगीत सुनाते हैं ।
महकते फूलों सी, सदा खुशियाँ बिखराते हैं ।।
मासूम अदाओं से, सबका दिल बहलाते हैं ।
बच्चों के संग, बड़े भी बच्चे बन ही जाते हैं ।।
अपने बच्चों में हम, अपना बचपन पाते हैं ।
चलो बचपन की यादें, फिर से दोहराते हैं ।।
कोई आँगन रहे ना बच्चों के बिन, दुआ मनाते हैं ।
आओ मिलकर बच्चों के संग, बाल दिवस मनाते हैं ।।