बच्चे थे तो अच्छे थे
“बच्चे थे तो अच्छे थे ,
जब दिल खोल के जी तो लेते थे
रो रो कर भी हस लेते थे ,
हर रिश्ते में खुश हो लेते थे .
हर आंसू के गिरने से पहले ,
कोई पोंछ उन्हें तो देता था
एक मुस्कराहट के पीछे ,
सब कुछ वार कोई तो देता था
वो भी क्या दिन थे जब
हिलते कदमो की आहट से ही
पहचान हमे कोई लेता था ,
सोचते हैं क्यों बड़े हुए ?
अपनी पहचान बनाकर भी ,
हम अपनों से हैं दूर हुए .
दुनिया को खुश करने की खातिर ,
अपनी ख़ुशी से दूर हुए .
इस रंग बदलती दुनिया में ,
शोहरत बी है और नाम भी है .
पर तेरी ख़ुशी में खुश हो ले
दुनिया में वो जज्बात नहीं .
इसीलिए बच्चे थे तो अच्छे थे ,
दुनिआ की सच्चाई से दूर तो थे “