बचपन की यादें
कुछ तो पीछे छोड़ आया हूं मैं
जिसकी कमी खल रही है
है जिंदगी बहुत खूबसूरत फिर भी
कोई तो कमी लग रही है।।
छोड़ आया हूं वो गांव अपना
जिसकी याद आती रहती है
सालों बाद जाना होता है वहां
जहां आज भी मेरी मां रहती है।।
दोस्तों संग खेलते थे रोज़ शाम को
वो शामें अब याद आती है
जब याद आती है मेरे उन दोस्तों की
कभी कभी अकेले में रुलाती है।।
हर वक्त बदलती रहती है जिंदगी
नित नए रूप बदलती है
देख लिया जीवन के अनुभवों से
कि किस्मत कैसे पलटती है।।
है सबकुछ आज पास मेरे फिर भी
कुछ तो कमी सी लगती है
जो मज़ा है मां के हाथ के खाने में
वो खुशी शहर में कहां मिलती है।।
जब बजता है सुबह का अलार्म
मुझे मेरे गांव की याद आती है
आज भी सुबह गांव में पंछियों की
चहचहाट के साथ ही आती है।।
जब कभी जिंदगी की व्यस्तताओं
से थोड़ा थक जाता हूं मैं
बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के
लम्हों को याद करता हूं मैं।।
जो भी छूट गया है जीवन में पीछे
उसको अक्सर याद करता हूं मैं
बचपन के वो पल जिनकी कमी
खलती है आज भी याद करता हूं मैं।।