बचपन
किस्सा बचपन का मुझे याद आता
आज भी बचपन की याद दिलाता।
लाया था मेरे लिए जब नया जूता
खुश बहुत था मैं पाकर वह जूता।
वह नया लाया था जूता मुझे
पिता जी ने फसल बेचकर।
खुश बहुत हुआ था मैं तब
गया था नया जूता पहनकर।
फट गया वह खेलते-कूदते
केवल दो-तीन दिन में।
दिखा न सका घर में उसे
छुपा देता घर के आंगन में।
सीखा था माँ से बचपन में ही
नाम लेना उस भगवान का।
कहती माँ, दुविधा आने पर थी
सुनता है भगवान सभी का।
करने लगा प्रार्थना भगवान से
सुनी थी जो रोज माँ से।
दूँगा भगवान दस रुपये तुमको
जुड़ जाए मेरा जूता सुबह को।
रोज देखता सुबह उठकर
जुड़ा होगा जूता मेरा।
जब देखता जूता, वैसे का वैसा
बढ़ा देता तब भगवान का पैसा।
दस से सौ तक था जा पहुँचा
जूता तो था अब भी वैसा।
डर बहुत था मेरे मन में
सोच उतनी ही थी बचपन में।
निश्छल, निष्कपट था हृदय
मात-पिता से लगता था भय।
लौट आते वह बचपन के दिन
बहुत सुन्दर था तब यह जीवन।
बचपन सी खुशी दे भाग्य विधाता
किस्सा बचपन का है याद आता।।
#संजय कुमार सन्जू
शिमला हिमाचल प्रदेश