#बचपन#
क्या बचपन के दिन थे वो
खूब खेलना मस्ती करना ,
लड़ना झगड़ना और तकरार।।
नही किसी की बात मानते,
खाते थे उसके लिए मार।
क्या बचपन के दिन थे वो।
क्या बचपन के दिन थे वो।
नही पढ़ाई की थी चिंता,
न काम की टेंशन यार।।
अपने मन का करते थे सब,
नही किसी की थी परवाह।
क्या बचपन के दिन थे वो
क्या बचपन के दिन थे वो।।
बित्ता, गिट्टी, दौड़ लगाना ,
इनसे होती थी दिन की शुरुआत
गुल्ली डंडा, छुपम छुपाई,
खो खो जैसे खेल हजार।
क्या बचपन के दिन थे वो।।
क्या बचपन के दिन थे वो।।
पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ना,
अमरूद के लदे थे बाग।
बेर, इमली की बात निराली,
जामुन से भी था प्यार।।
पेड़ पे चढ़कर के तोड़ के लाते,
सब मिल बैठ के खाते थे।।
पकड़े गए तो एक साथ में,
सबको पड़ती थी फटकार
क्या बचपन के दिन थे वो।
क्या बचपन के दिन थे ।।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ