“बचपन”
एक अद्भभुुत कहानी जीवन का,
कैसे तुम्हें बता पाऊंगा?
हृदय में उदित असीम पीड़ा,
नहीं भुला पाऊंगा।
भयभीत है मन अब,
अपनी ही परछाई से,
जो बीत गया बचपन,
आजीवन नहीं पाऊंगा।
मैं चाहकर भी नहीं,
तेरा कर्ज चुका पाऊंगा,
जो लुप्त हो गई,बचपन की हंसी,
कभी होठों पर नहीं पाऊंगा।
अन्तःकरण में चूभ रही,
बचपन की स्मृतियां सारी,
वे जीवन के सुखद अनुभूतियां,
अब अश्रु पात मैं ढा़ऊंगा।
एक अद्भभुत कहानी जीवन का,
कैसे तुम्हें बता पाऊंगा?
राकेश चौरसिया