बचपन
कुछ मासूम से लम्हें
भरते हैं किलकारियां
उस झील की आगोश में
ठंडी सुनहरी धूप में
कश्तियों में करती अठखेलियाँ
बचपन की मुस्कुराहटें !
लापरवाह बचपन में खोई
एक ज़िंदगी
तलाशती रही बेफ़िक्र वो लम्हे
कि खुलकर हँसता था बचपन
और रोने को नहीं खोजती थी नज़र
कोई अकेलापन !
बचपन की उँगली
हाथों के साए में
करती थी महसूस
खुद को महफूज़
बैठी हैं पलकों के साए में
उन ऊँची सीढ़ियों पर
आज भी कुछ शिकायती शरारतें !
हवाओं में लहराती
पतंगों के पेंच में
आँखों पर बैठ,
उड़ जाता था बचपन
हवाई जहाज़ पर बैठ
चक्कर लगाता था बचपन !
यादों के झुरमुट से झांकता
आँखों का वो भोलापन
कागज़ी थे सपने, अनजान थीं पलकें
झपक गयी कुछ पल के लिए
कुछ लम्हों में ही
कैद हुआ ये बचपन !
सूनेपन की गूँज का आँगन
पुकारता है तुम्हें
कहाँ गया वह
शैतानियों का लुटेरा बचपन
वही खूबसूरत
तेरा और मेरा बचपन !
डॉ. सीमा वर्मा ©️