बचपन
प्यारी अटखेलियाँ
नन्हीं सहेलियाँ
भाँती हैं मुझको
इनकी पहेलियाँ ,
छुप्पन – छुपाई
झगड़ा – लड़ाई
रूठना – मनाना
गुस्सा – हँसाई ,
यही वो दिन हैं
थोड़े पलछिन हैं
जी लो जी भर के
पल ये कमसिन हैं ,
जी भर के खेलना
माँ की डॉट झेलना
सबसे है दोस्ती
पर पढ़ाई से मेल ना ,
रोक लो – रोक लो
पकड़ लो – पकड़ लो
जाने ना पाये ये पल
इसको तो जकड़ लो ,
उम्र को रोक दो
नफरत को टोक दो
हमारे बचपन में
प्यार को झोंक दो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/09/2018 )