बचपन
आज मुझे फिर याद आया मेरा वो बचपन,
जिन्दगी बोझ नही थी,बेझिझक था ये मन।।
खेलना वो मिट्टी में, धूप से दो चार होना,फेंकना वो पत्थर पानी में, दोस्तो से नाराज होना,, वो घुटनों तक दिखता मैल,और जब ये जिन्दगी हुआ करती थी बस एक खेल।।
आज मुझे फिर याद आया मेरा वो बचपन——
वो छोड़ के शर्म बारिश में नहाना,मिट्टी के किले बनाना फिर उनको ढ़हाना,छोटी सी चौट को माँ को दिखाना,माँ का प्यार से मुझे गले लगाना।।
आज मुझें याद—————‐–‐
वो फेंक कर पत्थर पेड़ों से तोते उड़ाना,आहिस्ता आहिस्ता दोपहर में घर से भाग जाना,बेसुरी आवाज में गाना गाना, वो सुबह कबूतरों को दाना चुगाना,बैठी गाय की पूँछ हिलाना,और अपनी हर गलती पर मासूम से बहाने बनाना।
आज मुझे याद आया————-
जब चाँद हुआ करता था अपनी ही जागीर,जब कभी कभी खाने को मिलती थी खीर,जब मन में हुआ करते थे मोहम्मद और मीर, जिन्दगी एक उपवन थी, कोसौ दूर रहा करती थी पीर।।
आज मुझे फिर से याद—–