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20 Mar 2019 · 1 min read

# बचपन

फिर ,वही धुन
प्रापत कर लूं
अपना बचपन
नन्हा बचपन
एक नई जिज्ञासा
मिट्टी चखने की
मुंह में दबा रखने की
अग्नि के धधकते शोलों को
लपक छुने की
चाँद को अपने
आंगन में लाने की जिद
हठी आचरण से
विस्मृत कर दूं
सारी बेडियां
काट डालूं
नेकी-बदी के नियम
कुछ न समझूं
ब्यवहार से अज्ञानी
बन पा लूं मैं
पुनः, वही बचपन
तब तो फिर
मेरे तपिश भरे
जीवन का पुनः
हो जाए पुर्नजन्म

स्वलिखित डॉ. विभा यजंन(कनक)

Language: Hindi
465 Views
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