बचपन
हमारे शास्त्रों में जब कहा गया है कि माँ का स्थान पिता से सौ गुना अधिक होता है , और पिता का गुरू से हज़ार गुना , तो यहाँ बहुत महत्वपूर्ण बात कही जा रही है , क्योंकि बचपन में माता पिता यदि मानसिक रूप से संतुलित हैं तो बच्चे को वे वह दे सकते है, जो उसके आत्मविश्वास के लिए आवश्यक है , अर्थात् जो उसके सफल जीवन के लिए आवश्यक है ।
आज जब भी कोई व्यस्क अपनी मानसिक समस्याओं की बात करता है तो उसकी जड़ें कहीं न कहीं बचपन में मिलती हैं , बचपन के बुरे अनुभव मनुष्य को अपंग बना देते हैं , और कई बार दुनिया का पूरा ज्ञान उसे ठीक करने में कम पड़ जाता है ।
आज वैज्ञानिक बचपन और बचपन से पूर्व गर्भावस्था के विषय में बहुत कुछ जानते हैं। वे जानते हैं कि क्योंकि हम दो पैरों पर चलने वाले प्राणी हैं, इसलिए हमारे बच्चे को समय से पहले दुनिया में आना होता है , और मस्तिष्क तो जन्म के समय केवल पचास प्रतिशत ही विकसित होता है , बाक़ी अट्ठारह वर्ष तक होता रहता है , और उसमें भी , मस्तिष्क के अलग अलग हिस्से हैं , जो अलग अलग समय पर विकसित होते हैं , और मनुष्य के जीवन की जो नींव है , वही हमारे समाज की नींव है । इस समय हमें बच्चे को सूचनायें देनी होती हैं , सूचनाओं का विश्लेषण करना सिखाना होता है , और जीविकोपार्जन के लिये वह दिशा भी देनी होती है , जिसमें वह जीवन के अर्थ पा सके , परन्तु यह सब तभी संभव है जब बच्चा प्रसन्न हो , और वह प्रसन्न तभी रह सकता है , जब उसे पता हो , उसे इन दो लोगों का , जिन्हें वह माँ बाप कहता है , का प्यार और समर्थन हर स्थिति में मिलेगा , और यह विश्वास दिलाने के लिए आवश्यक है कि माँ बाप उसके साथ समय बितायें , उसके प्रश्नों का सहानुभूतिपूर्वक उत्तर दे, और उसे दूसरों से स्नेह करना सिखायें , उसे हर कदम पर बतायें कि समाज हम सबके व्यक्तित्व से बना है, जब भी एक मनुष्य थोड़ा कम पड़ जाता है , समाज की बुनियाद में खरोंच आनी शुरू हो जाती है ।
मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री, जीववैज्ञानिक , इन सब बातों को बहुत अच्छी तरह से जानते है, परन्तु इसे जीवन में ढालना किसी के बस की बात नहीं रही , हमारी अर्थव्यवस्था आज इसकी अनुमति नहीं देती कि माँ घर में रहे, और भविष्य की धरोहर को रंग रूप दें । परिवार टूट रहे है , ‘ एक बच्चा बड़ा करने के लिए एक गाँव की आवश्यकता होती है ‘ ऐसे विचार मूल्यवान तो हैं , परन्तु उनका ख़रीददार कोई नहीं । बच्चे डे केयर में जा रहे हैं , क्योंकि यदि माँ घर रूक भी जाए तो वह वो परिवार कहाँ से लाए जो बच्चे की भावनाओं को पोषित करे । आज हम बच्चे को सिखा रहे है , विश्वास मत करना , पैसा कैसे बढ़ाना है , यह जल्दी से जल्दी सीख , डे केयर में पूरे पाठ्यक्रम हैं कि किस उमर के बच्चे को क्या सिखाया जाए , यानी, जैसे कि एक साल के बच्चे का दिमाग़ कितना बड़ा है, उसके अनुसार उसे खेलना और रंग, आकर आदि सिखाये जायें , परन्तु इस बच्चे को जिस स्नेह की आवश्यकता ज्ञान से अधिक है , उसे माँ बाप ही दे सकते हैं , जो इस समय बैंक से उधार लेकर बैठे हैं , नई गाड़ी ख़रीदना चाहते हैं , या स्कूल की फ़ीस इतनी ज़्यादा है कि बस जोड़ने में व्यस्त हैं ।
हम बहुत सी कोशिकाओं से बने हैं , इन कोशिकाओं का इतिहास भी survival of the fittest के साथ जुड़ा है , survive वही कर पाता है , जो अपने वातावरण के अनुसार ढल पाता है । आज हम , हमारे युवा , सब इस survival की दौड़ में है , इसमें बचपन अपने बड़ों से कट गया है । यही बच्चे जब बड़े होंगे , ये अनुभव का मूल्य नहीं जानेंगे, अपितु अपने दोस्तों की सुनेंगे, ये दोस्त उन्हें असीमित प्यार नहीं दे सकते , और ये बच्चे कभी भी पूर्ण आत्मविश्वासी नहीं बन सकते । आज अपने मित्रों से स्वीकृति पाने के लिए, दस साल की लड़कियाँ मेकअप करती हैं , लड़के गैजेट ख़रीदते है । आप सोचिये , जब बचपन इतना खोखला है तो जवानी क्या होगी ।
आप में से कुछ लोग कह सकते हैं कि यह बहुत निराशावादी विचार है , और मैं मानती हूँ , यह है , क्योंकि आज धन चरित्र से अधिक महत्वपूर्ण हो उठा है , यदि हम चाहते हैं कि बचपन खुशहाल हो तो हम ऐसे समाज का निर्माण करें जहां यह संभव हो । हमारा जीवन कैसा हो , इसकी चर्चा करें । प्रकृति ने सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए हमें बहुत कुछ दिया है , परन्तु हमीं अपनी भावनाओं को परिष्कृत करने में असफल रहे हैं । आज हम वही करें , विज्ञान ने बहुत सा deta इकट्ठा किया है , उसे समझे , अर्थव्यवस्था उसके अनुसार ढाले , आज हम जीवन को अर्थ -व्यवस्था के अनुसार ढाल रहे हैं , जबकि अर्थव्यवस्था को जीवन का अनुसरण करना चाहिए । इस जीवन को बिना पूर्वाग्रहों के समझे , और बचपन को निखारें ।
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि AI आ रही है , मनुष्य का भी यंत्रीकरण हो रहा है, यह उसका प्रारंभ है , जीवन भावनाओं से नहीं तर्क के बल पर चलेगा , और यह हो सकता है सही हो , फिर हमें यह जान लेना चाहिए, हममें से कितने लोग हैं जो यह भविष्य चाहते है, और यदि नहीं चाहते हैं तो क्या उनके पास चुनाव है ?
—- शशि महाजन