बचपन
मेरा बचपन
भी यादों की एक
छोटी सी पोटली है
जिसे मैं रोज़ सिरहाने
रख के सोती हूँ
उस पोटली में से
रोज़ कोई न कोई याद
निकलकर मेरी बंद पलकों के
पीछे जा बैठती है
मुझे रोज़ उसी बीते वक़्त
की सैर पर ले जाती है
जहाँ मैं हर चिंता, डर से मुक्त
ज़ोर ज़ोर से हँसती,
मुस्कुराती हूँ
सुबह नींद से जागने पर
वही मासूमियत मेरा चेहरा
सजाती है…
©️कंचन”अद्वैता”