बचपन
आओ आज उस बचपन को फिर से याद करते है
फिर से हस्ते और फिर से सजते सवरते है
वो सावन के झूले वो झूलो पे सखिया
वो सखियों संग झूलना वो गुडियो से खेलना
वो बारिश की मस्ती वो पानी में कश्ती
वो चूड़ी की खन खन वो पायल की छन छन
वो घेवर की खुशबू वो सिवई की मिठास
वो राखी का बंधन वो तीज का त्यौहार
वो बहनो का रूठना वो भाइयों का मनाना
वो खेल खेल में गुडियो का घर बसाना
नम कर देता है इन आँखों को मेरी
यादें बनकर खेलता है मुझसे आँख मिचोली
न जाने अब वो गुड़िया कहा धूमिल हो गयी
और देखते ही देखते मैं भी बड़ी हो गयी